चीन और भारत में सीमा पर तनाव लेकिन बढ़ता रहा व्यापार, मगर कैसे?

132

भारत और चीन -भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुई झड़प और इससे पैदा हुए गंभीर तनाव के बावजूद साल 2020 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा. पिछले वित्तीय वर्ष में भी चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर था.

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

पिछले साल दूसरे स्थान पर अमेरिका और तीसरे पर संयुक्त अरब अमीरात था. भारत ने चीन से 58.7 अरब डॉलर का सामान आयात किया, जो अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात से आयात किए गए सामानों को मिलाकर भी ज़्यादा था, जबकि भारत ने चीन को 19 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया.

गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की मृत्यु के बाद दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल हो गया था. चीन ने कुछ दिनों पहले ये माना है कि उसके भी चार सैनिक मारे गए थे. हालाँकि भारत का दावा है कि इसमें चीन के और ज़्यादा सैनिक हताहत हुए थे.

गलवान की घटना के बाद दोनों देशों के बीच दोतरफ़ा व्यापार पर थोड़ा असर ज़रूर हुआ था, जो महामारी के कारण और भी प्रभावित हुआ था. लेकिन बहुत अधिक नहीं.

भारत सरकार ने चीन से सभी निवेश पर रोक लगा दी थी, साथ ही 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर सुरक्षा का कारण बता कर पाबंदी लगा दी गई थी, जिनमे लोकप्रिय ऐप टिकटोक, वीचैट और वीबो शामिल थे.

आत्मनिर्भरता अभियान कितना असरदार?

पिछले साल मई में भारत सरकार ने आत्मनिर्भरता का अभियान चलाना शुरू किया था, जिसका उद्देश्य आयात को कम करना था, निर्यात को बढ़ाना और देश के अंदर मैन्युफ़ैक्चरिंग को बढ़ावा देना था, जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि ये अभियान चीन पर निर्भरता कम करने पर अधिक केंद्रित था.

छत्तीसगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स चुनाव 2021 : अध्यक्ष पद पर मात्र 2 उम्मीदवार, दो पैनलों के बीच कांटे की टक्कर

लेकिन ताज़ा व्यापारिक आँकड़े बताते हैं कि इन सब क़दमों के बावजूद चीन पर निर्भरता कम नहीं हो सकी है. आँकड़ों के अनुसार पिछले साल भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 77.7 अरब डॉलर का था, जो वाणिज्य मंत्रालय के अस्थायी आँकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष के 85.5 अरब डॉलर से थोड़ा ही कम था.

दूसरी तरफ़ भारत सरकार ने चीनी निवेश को दोबारा मंज़ूरी देने की मीडिया में आई ख़बर को ग़लत बताया है. वैसे भी चीन भारत में कभी भी एक भारी निवेशक नहीं रहा है. चीन ने 2013 से 2020 के बीच भारत में 2.174 अरब डॉलर निवेश किया था.

ये राशि भारत में विदेशी निवेश का एक छोटा हिस्सा है. वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक़, साल 2020 में अप्रैल से नवंबर के बीच भारत में 58 अरब डॉलर से अधिक विदेशी निवेश आया था.

दिल्ली में फ़ोर स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में चीनी मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ैसल अहमद कहते हैं कि आत्मनिर्भरता का अर्थ ये नहीं है कि आयात बंद हो जाए या विदेशी निवेश देश में ना आए.

वो कहते हैं, “आने वाले समय में चीन पर भारत की आयात निर्भरता अधिक बनी रहेगी. यह आवश्यक है कि हमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपने लिए फ़ायदेमंद बनाने के बारे में सोचना चाहिए. यह हमारे आर्थिक हितों को अच्छी तरह से पूरा करेगा और साथ ही आत्मनिर्भर आत्मनिर्भरता को समर्थन करेगा.”

डॉक्टर फ़ैसल आगे कहते हैं, “भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक साधन के रूप में विदेशी निवेश (एफ़डीआई) हासिल करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है. हम मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उत्पादन क्षमता बढ़ाना चाहते हैं. हम अपने लघु और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में उनकी मदद करनी चाहिए, ताकि वो ग्लोबल वैल्यू चेन (जीवीसी) में भाग ले सकें. इसके लिए एफ़डीआई ज़रूरी है. वास्तव में, एफ़डीआई अगर चीन से भी आए, तो ये आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत भी चीन को अपना निर्यात 11% तक बढ़ाने में सक्षम है और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश में वृद्धि से भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा मिलेगा.”

लैंगिक बजट 38.6 प्रतिशत बढ़ा

फ़िलहाल भारत चीन में बनी भारी मशीनरी, दूरसंचार उपकरण और घरेलू उपकरणों पर बहुत अधिक निर्भर है और ये चीन से आयात किए सामानों का एक बड़ा हिस्सा है. परिणामस्वरूप, 2020 में चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार अंतर लगभग 40 अरब डॉलर था. इतना बड़ा व्यापारिक असंतुलन किसी दूसरे देश के साथ नहीं है.

इसके अलावा, डॉक्टर फ़ैसल अहमद के अनुसार, “आज की नई उभरती वैश्विक व्यवस्था में हमें अपने आर्थिक हित में भी इसे देखा जाना चाहिए. वैश्विक मामलों, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक में, अमेरिका की बढ़ती भूमिका को देखते हुए यह हमारे रणनीति के लिए और साथ ही क्षेत्र में आर्थिक हितों को तेज़ी से सक्रिय करने का समय है.”

चीन थोड़ा सावधान

चीन में सिचुआन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के एसोसिएट डीन, प्रोफेसर हुआंग यूनसॉन्ग भारत और चीन के बीच दोतरफ़ा व्यापर और भारत में चीनी निवेश को आगे बढ़ाने के पक्ष में ज़रूर हैं, लेकिन वो सावधानी बरतने की सलाह भी देते हैं.

बीबीसी से बातचीत में वे कहते हैं, “हम इसे द्विपक्षीय संबंधों को फिर से शुरू करने के एक अच्छे संकेत के रूप में लेते हैं, लेकिन काफ़ी एहतियात के साथ.”

आने वाले दिनों में चीनी निवेश पर उनका कहना था, “चीनी निवेशकों ने ये कठिन सबक सीखा है कि सियासत अर्थव्यवस्था को कैसे हिला सकती है, और इसलिए इस समय चीनी निवेशकों के बीच अधिक जोख़िम न उठाने और सतर्क होने का माहौल है. इस समय चीनी निवेशकों के बीच भारतीय बाज़ार का फिर से जायज़ा लिया जा रहा है.”

प्रोफेसर हुआंग यूनसॉन्ग चीनी निवेश, आपसी व्यापर और दोनों देशों के बीच फिर से रिश्ते सामान्य करने पर कहते हैं, “अभी डिसइंगेज़मेंट के कई चरणों को पूरा किया जाना बाक़ी है, और आगे के आने वाले सभी तरह के जोखिमों को नज़र अंदाज़ करना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी.”

मांस- मटन विक्रय रहेगा प्रतिबंधित

चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत महामारी से पहले छठे नंबर पर था. दो साल पहले भारत और चीन के बीच आपसी व्यापर लाभ 90 अरब डॉलर से अधिक तक पहुँच गया था.

लेकिन 2019 में इसमें गिरावट देखने को मिली. इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का ज़ोर इस बात पर है कि चीन के साथ व्यापारिक असंतुलन को कम किया जाए, जिसके लिए देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है.

‘चीन से पीछा छुड़ाना असंभव’

कई विशेषज्ञ कहते हैं कि फ़िलहाल चीन से पीछा छुड़ाना असंभव है और चीन पर भारत की निर्भरता अगले कई सालों तक बनी रहेगी. लेकिन डॉक्टर फ़ैसल अहमद कहते हैं कि इस मुद्दे को किसी टाइम फ़्रेम में नहीं देखना चाहिए.

वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि आत्मनिर्भरता एक सतत प्रक्रिया है, इसकी कोई समयसीमा नहीं हो सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर हम एक प्रमुख निर्यातक बनने का इरादा रखते हैं, तो हमें एक बड़ा आयातक देश भी बनना पड़ेगा.”

वो आगे कहते हैं, “अमेरिका और चीन दोनों प्रमुख निर्यातक और प्रमुख आयातक भी हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि निर्यात प्रतिस्पर्धा लागत लाभ पर निर्भर करती है और इसलिए निर्यात बढ़ाने के लिए बहुत सारे सेक्टर में हमें कच्चा माल, और पार्ट पुर्ज़े आयात करते रहना पड़ेगा. इसलिए आत्मनिर्भरता समय के हिसाब से सीमित नीति नहीं है.”

चीन महामारी की तबाही से सबसे मज़बूत तरीके से उभरा है और चीनी अर्थव्यवस्था ठोस स्तम्भ पर टिकी है. भारत की अर्थव्यवस्था भी महामारी की चोट से धीरे-धीरे उभर रही है. विशेषज्ञों की राय में दोनों पड़ोसी देशों के बीच सहयोग से दोनों का फ़ायदा होगा.