छत्तीसगढ़ में कैथोलिक ननों और एक आदिवासी युवक की अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी – राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा

नई दिल्ली : राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि हम एनआईए अदालत द्वारा दो कैथोलिक ननों और एक आदिवासी युवक को ज़मानत देने के फैसले का स्वागत करते हैं। हालांकि यह आदेश अस्थायी राहत प्रदान करता है, लेकिन यह मलत गिरफ्तारी और उत्पीड़न से जुड़े एक बेहद परेशान करने वाले प्रकरण के बाद आया है।

दो कैथोलिक ननों – प्रीति गैरी और वंदना फ्रांसिस और एक आदिवासी युवक सुखमन मंडावी को 25 जुलाई, 2025 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर मानव तस्करी और तीन आदिवासी लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन के मनगढ़ंत आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। ये आदिवासी लड़कियाँ अपने परिवारों से सहमति पत्र लेकर, ननों के साथ रोज़गार के अवसरों के लिए कानूनी तौर पर आगरा जा रही थीं, सभी की उम्र 18-19 वर्ष है।

 

जबरदस्ती या धर्मांतरण के किसी भी सबूत के अभाव और यात्रा की वैधता का समर्थन करने वाले स्पष्ट दस्तावेज़ों के बावजूद, बजरंग दल के एक कार्यकर्ता की शिकायत के बाद समूह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। ऑनलाइन प्रसारित एक वीडियो में पुलिस अभिरक्षा मे ननों को बजरंग दल के द्वारा गाली-गलौज, मारपीट और धमकियों का सामना करते हुए दिखाया गया है फिर भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन यह घटना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 अर्थात् समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का घोर उल्लंघन दर्शाती है। पुलिस और न्यायपालिका की कार्रवाई राज्य संस्थानों की निष्पक्षता और न्यायसंगतता पर गंभीर चिंताएँ पैदा करती है। रेलवे अधिकारियों की भूमिका भी उतनी ही चिंताजनक है, जिन्होंने प्रोटोकॉल का पालन करने के बजाय, एक अतिवादी समूह को शामिल किया, जिससे संबंधित महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा से समझौता हुआ।

लक्षित उत्पीड़न का एक पैटर्न: यह कोई अकेली घटना नहीं है। यह पूरे भारत में ईसाई-विरोधी हिंसा के एक व्यापक और बढ़ते पैटर्न का हिस्सा है। अकेले 2024 में, मानवाधिकार निगरानीकर्ताओं ने ईसाइयों के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न और हिंसा की 600 से अधिक घटनाओं की सूचना दी है, जिनमें चर्च पर हमले, शारीरिक हमले और मनमाने ढंग से हिरासत में लेना शामिल है जिनमें से कई धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियमों के बहाने किए गए।

छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस उत्पीड़न के केंद्र बन गए हैं, जहाँ आदिवासी बहुल बस्तर क्षेत्र लगातार दबाव का सामना कर रहा है, जहाँ अतिवादी समूह दंड से मुक्त होकर काम करते हैं।

ये घटनाएँ हाशिए पर पड़े समुदायों विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग पृष्ठभूमि के ईसाइयों को असमान रूप से प्रभावित करती हैं और अक्सर सामाजिक बहिष्कार और संस्थागत उदासीनता के साथ होती हैं।

तक्ताल कार्रवाई का आह्वान राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा मांग करता है कि,
(क) सिस्टर प्रीति मैरी, सिस्टर वंदना फ्रांसिस और सुखमन मंडावी के खिलाफ लगाए गए सभी झूठे आरोपों को रद्द किया जाए।
(ख) उत्पीड़न और भीड़ द्वारा धमकी के लिए जिम्मेदार बजरंग दल के सदस्यों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
(म) घटना को गलत तरीके से संभालने में पुलिस और रेलवे अधिकारियों की भूमिका की गहन जांच की जाए।
(घ) धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर महिलाओं और आदिवासियों के संवैधानिक और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कड़े सुरक्षा उपाय किए जाये।
हम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से हस्तक्षेप करने और स्थिति की निगरानी करने का आह्वान करते हैं। भारत सरकार और राज्य सरकारों को संवैधानिक आदेश का पालन करना चाहिए और राजनीतिक रूप से प्रेरित एजेंडों के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दबाने के लिए कानूनों के दुरुपयोग को रोकना चाहिए।

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