सतिगुरू नानक प्रगटिआ : मानव कल्याण की राह दिखाने वाले प्रथम गुरु

रायपुर। सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का आगमन 1469 ई. में पिता “महिता कालू चंद जी” तथा माता “त्रिपताजी” के घर तलवंडी “राय भोंए” नामक गांव में हुआ। उनके आगमन से ही सारा “जग जगमगा” उठा।
श्री गुरनानाक देव जी का प्रकाश मानव कल्याण के लिए ही हुआ था।

उस समय भारत ऐसा भूखंड था, जहां विदोशी हमलावारो के अत्याचारो से लोग जिंदगी के पल गिन गिन कर काट रहे थे। इस हमले में स्त्रियों की दुर्दशा होती जा रही थी। धर्म तथा ईमान कुछ भी नहीं था।

बाबा नानक जी को यह भी चिंता थी कि भारतीय समाज के टुकड़े टुकड़े ना हो जाये।

नानक दुखिया सब संसार”

इस संसार मे सभी प्राणी दुखी थे। चारो ओर हाहाकार मचा हुआ था। “जो जो दीसै सो सो रोगी”
अर्थात जो भी दिखाई देता है वह रोगी है। रोग कैसे मुक्त हो सकता है। इसका समाधान श्री गुरूनानक देव जी ने समझाया।

“सुणिये दुख पाप का नास” अर्थात परमात्मा का नाम लेने और सुनने से दुख दूर हो जाते है।
श्री गुरूनानक देव जी हमेशा अकाल पुरख की बदंगी करने पर जोर देते रहे। उन्होनें मेहनत की कमाई पर जोर दिया।

” किरत करो, नाम जपो, वंड छकों”

इसी मे मानव जीवन मूल्यवान बनता है।

श्री गुरूनानक देव जी जहां भी गये उन्होनें पवित्र जीवन जीने को कहा। मनुष्य के अपने कर्मों का फल भी उन्हीं के अनुसार मिलता है। इसलिए श्री गुरूनानक देव जी ने बार बार जाप पर बल देते रहें।
बाबा नानक का संदेश था “दुख मे ही क्यों सुख मे भी प्रभु के नाम का जाप करना चाहिए” सच्ची शांति केवल ईश्वर के चरणों में मन लगाने से ही प्राप्त होती है।

हिन्दू और मुस्लमान के अंतर को मिटाने के लिए श्री गुरू नानक देव जी ने “ना हम हिन्दू ना मुस्लमान” का संदेश दिया। उन्होनें अपने आपको पूरी तरह से परमात्मा के आगे समर्पित कर दिया था।
करतारपुर में अपने ही हाथों से अपने खेतों में कृषि करते रहे। तेरा तेरा के मीठे बोलो से गरीब, दीन, दुखियों मे अनाज बांटते रहे और लगर की प्रथा चलाई इस धरती को बाबा नानक ने ही सींचा।

बाबा नानक जी एक दिन वन पर्वतों की यात्रा करते हुए दीन दुखियों, दर्द मंदों का दुख दूर करने पैदल निकल पड़े। भाई मरदाना जी धर्म प्रचार के लिए की गइ यात्राओं में छाया की तरह श्री गुरू नानक देव जी के साथ ही रहते थे।
गर्मी का मौसम था, भाई मरदाना जी को बहुत प्यास लगी। आस पास कहीं दूर दूर तक पानी नहीं दिखाई दे रहा था। बाबा नानक जी ने पहाड़ी की चोटी पर नजर डाली और मरदाना जी को कहा इस पहाड़ी पर वली कंधारी नाम का एक वीर रहता है। उस कुटियां मे जाओं और वहां जाकर पानी पी आओं।
भाई मरदाना जी पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे और वली कंधारी से कहा मुझे प्यास लगी है कृपया अपने चश्में से थोड़ा पानी पीने के लिए दे दो।

वली कंधारी ने कहा तुम कौन हो यहां कैसे आये?

मेरा नाम मरदाना है, मै श्री गुरूनानक देव जी का साथी हूं। गुरू जी ने मुझे यहां पानी के लिए भेजा है।
वली कंधारी ने कहा अगर तुम्हारे गुरू में इतनी शक्ति है तो क्या वह तुम्हें पानी नहीं पिला सकता? तुम्हारा गुरू स्वयं मेरे पास चलकर आये और मेरी अधीनता स्वीकार कर ले तो मैं तुम्हें पानी पिला दूंगा।
भाई मरदाना जी को कंधारी की बातें अच्छी नहीं लगी। बिना पानी पिये आ गये। श्री गुरू नानक देव जी ने दुबारा भेजा, फिर भी वली कंधारी ने पानी ना दिया, और मरदाना जी वापिस आ गये।
बाबा नानक ने कहा “मरदानिया” इस पत्थर को उठाओं ज्यों ही भाई मरदाना जी ने वह पत्थर उठाया, पानी का चश्मा फुट पड़ा और स्वच्छ जल की धारा बहने लगी। फिर मरदाना जी ने खूब पानी पिया और न जाने कितने थके मंदे पथिकों ने प्यास बुझाई।

कुछ देर बार वली कंधारी को प्यास लगी। वह चश्में के पास पानी पीने आया तो देखा उसके चश्में का पानी समाप्त हो चुका है। उसने पहाड़ी के नीचे झांक कर देखा कि “बाबा नानक” और भाई “मरदाना जी” पहाड़ी के दामन बैठे नए फुटे चश्में की लहरों का आनन्द ले रहे है।
यह दृश्य देख कंधारी आग बबूला हो गया। उसने बड़ा सा पत्थर दोनों के उपर फेंका बाबा नानक जी ने पत्थर को अपनी ओर आता देख अपना दायां हाथ पत्थर को रोकने के लिए बढ़ाया। पत्थर रूक गया और बाबा नानक जी के हाथ का पंजा उस पत्थर पर अंकित हो गया।

अब वली कंधारी को बाबा नानक जी की शक्ति का एहसास हुआ और उसकी अपनी शक्ति का अहंकार जाता रहा। विनम्र होकर गुरू जी के चरणों में आ गिरा।
बाबा नानक जी ने कहा तुम तो एक महान तपस्वी हो। प्रभु का नाम जपने वाले को अहंकार शोभा नहीं देता। प्यासे को पानी पिलाना तो सबसे बड़ी सेवा है। बाबा नानक ने अभिमान छोडकर परमात्मा की भक्ति का उपदेश दिया।
श्री गुरु नानक देव जी के हाथ का पंजा पत्थर पर आज भी लगा हुआ है। जहां आज गुरुद्वारा “पंजा साहिब” (पाकिस्तान) सुशोभित हैं

“वाहिगुरू जी का खालसा वाहिगुरू जी की फतहि”

 

मनजीत कौर पसरीजा

vicky Silas

विक्की साइलस – संपादक, छत्तीसगढ़ प्राइम टाइम विक्की साइलस पिछले 12 वर्षों से मीडिया क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने करीब 10 साल तक छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख सांध्य दैनिक अखबार में पत्रकार के रूप में कार्य किया है। वर्तमान में वे छत्तीसगढ़ प्राइम टाइम के संपादक हैं। वे सरल, तथ्य आधारित और जिम्मेदार पत्रकारिता में विश्वास रखते हैं। उनकी नेतृत्व में “छत्तीसगढ़ प्राइम टाइम” आम लोगों की आवाज़ को प्राथमिकता देने वाला भरोसेमंद डिजिटल प्लेटफॉर्म बनता जा रहा है।

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