हिन्दू धर्म में छठ महापर्व सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार होता है. इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की पूजा-उपासना विधि-विधान के साथ की जाती है. यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. आज 17 नवंबर दिन शुक्रवार से शुरू हो गया है और इस पर्व का समापन 20 नवंबर को होगा. इस छठ महापर्व का लोगों को बड़ी बेसब्री से इतंजार रहता है. छठ ही वो मौका होता है जब अपने गांव-घर से दूर शहर में रहने वाले लोग अपने घर आते हैं. छठ में पूरा परिवार एकजुट होकर इस पर्व को मनाता है. ऐसे में छठ पूजा को लेकर लोगों में एक अलग ही भावना होती है. चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य देते हुए समापन होता है.
छठ पर्व पर नहाय खाय
छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय का होता है. इस दिन व्रती महिलाएं प्रात:काल उठकर स्नान आदि कर साफ या नए वस्त्र धारण करती हैं.
इसके बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करने के बाद सात्विक भोजन करती हैं.
नहाय खाय का खाना बिना प्याज और लहसुन के बनाया जाता है.
इस दिन कद्दू की सब्जी, लौकी चने की दाल और भात यानी चावन खाया जाता है.
नहाय खाय के दिन बनाया गया खाना सबसे पहले व्रत रखने वाली महिलाओं को परोसा जाता है. इसके बाद ही परिवार के लोग भोजन ग्रहण कर सकते हैं.
नहाय खाय के दिन भूलकर भी लहसुन और प्याज का सेवन न करें, वरना आपका व्रत टूट भी सकता है.
परिवार के सदस्यों को भी इस दिन सात्विक भोजन ही करना चाहिए.
छठी पूजा का महत्व
छठ पूजा के दौरान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस पूजा में भक्त गंगा नदी जैसे पवित्र जल में स्नान करते हैं। महिलाएं निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव और छठी माता के लिए प्रसाद तैयार करते हैं। दूसरे और तीसरे दिन को खरना और छठ पूजा कहा जाता है। महिलाएं इन दिनों एक कठिन निर्जला व्रत रखती हैं। साथ ही चौथे दिन महिलाएं पानी में खड़े होकर उगते सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर व्रत का पारण करती हैं।
छठ पूजा में भूलकर भी न करें ये गलतियां
छठ पर्व के दिनों में भूलकर भी मांसाहारी चीजों का सेवन न करें। साथ ही छठ पूजा के दिनों में लहसुन व प्याज का सेवन भी न करें। इस दौरान व्रत रख रही महिलाएं सूर्य देव को अर्घ्य दिए बिना किसी भी चीज का सेवन न करें।
छठ पूजा का प्रसाद बेहद पवित्र होता है। इसे बनाते समय भूलकर भी इसे जूठा न करें।
पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का ही इस्तेमाल करना चाहिए। पूजा के दौरान कभी स्टील या शीशे के बर्तन प्रयोग न करें।
साथ ही प्रसाद शुद्ध घी में ही बनाया जाना चाहिए।