इन्हे ऐसा लगने लगा है कि ये 2 साल, 4 साल के बच्चो को डॉक्टर, इंजीनियर बना लेंगे।
यह बात समझ से बिल्कुल परे है कि वे बच्चे अपने माता पिता के साथ समय बिताने और उनसे नैतिकता सीखने के उम्र मे ऐसी कौन सी नयी शिक्षा है, जिसे बाहरी लोगों और गैर प्रशिक्षित शिक्षकों से सीख लेंगे।
सीखना तो आपको है, कि इतने छोटे बच्चो को उन व्यवसायिक विद्यालयों मे भेजने से आपके बच्चे को मानसिक दबाव को छोड़कर और कुछ नही मिलने वाला।
शासकीय विद्यालयों मे भर्ती की न्युनतम आयु 5 वर्ष 3 माह रखी गई है। तो आप क्या विचार करते हैं, कि उनके मन मे अचानक कोई संख्या आई और उन्होंने 5 वर्ष लिख दिया.. नहीं… इसके लिए सैंकड़ो बाल मनोवैज्ञानिकों एवं सैंकड़ो शिक्षाविदों द्वारा अध्ययन एवं अनुसंधान किया गया और उनके वैचारिक एवं प्रायोगिक निष्कर्ष के बाद यह निर्णय लिया गया है। वास्तविकता तो यह है, कि बाल मनोविज्ञान के अनुसार किसी सामान्य बच्चे के मस्तिस्क मे स्थाई समझ का विकास ही 5 वर्ष के बाद शुरू होता है। अर्थात… आपका अभी से उसे सैद्धांतिक शिक्षा देना व्यर्थ है।
इन तथ्यों को तो फिर भी आप मानने से मना कर सकते हैं, परंतु आप जरा अपने अतीत मे जाकर देखिये….. आपको अपने 5 वर्ष से कम उम्र के कौन कौन से सिद्धांत और घटनाएं याद हैं? संभव है कि एक भी ना हो, तो आप अपने बच्चे के लिए यह कैसे सोंच रहे हैं, कि उन्हे इतने कम उम्र मे सैद्धांतिक शिक्षा देना चाहिए।
इस अचानक आए नए मानसिक परिवर्तन (पालकों मे) का एक बड़ा कारण तुलना भी है….. कि अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चो से करना……. यकीन मानिये आपका बच्चा जरूर एक ऐसी प्रतिभा के साथ जन्मा है जो निश्चित ही उन दूसरे बच्चो मे नही होगा। हर बच्चा स्वयं मे ही विशेष होता है, और माता पिता होने के नाते आपकी जिम्मेदारी है कि आप उसकी उसी प्रतिभा को पहचाने और उसे शिखर पर ले जाएं और अपने बच्चे के इस दोबारा ना मिल पाने वाले बचपन को खुलकर जियें……सैद्धांतिक शिक्षा सही उम्र मे ही दें।