ई-कामर्स में ऐमज़ान की हेराफेरी पर अमरीकी सीनेटरों की सक्रियता तथा भारत में चुप्पी पर कैट ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप का आग्रह

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कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि देश के ई-कामर्स व्यापार में विदेशी ई-कामर्स कम्पनियों द्वारा की जा रही धांधली और मनमानी के विरोध में रोष ज़ाहिर करते हुए कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजकर इस मामले में उनके सीधे हस्तक्षेप का आग्रह किया है। कैट ने प्रधानमंत्री मोदी को भेजे पत्र में अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा की भारत में ऐमज़ान की धांधली को लेकर अमरीकी सीनेट के लगभग 15 सदस्य तो सक्रिय हो गए किंतु भारत से ही जुड़े संगीन मामले पर सभी मंत्रालयों एवं सरकारी विभागों की चुप्पी एक देश की प्रशासनिक व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है और क्योंकि गत 5 वर्षों से बार बार कहने पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है, लिहाज़ा अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री श्री मोदी का सीधे हस्तक्षेप करना ज़रूरी हो गया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी को भेजे पत्र में कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने देश के ई-कॉमर्स व्यापार की वर्तमान परिस्थितियों की ओर दिलाते हुए कहा की जिसमें विदेशी धन से पोषित दुनिया की प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों ने वर्ष 2016 से देश के क़ानून एवं नियमों का खुले रूप से घोर उल्लंघन करते हुए ई-कॉमर्स व्यापार पर एक तरह से अपना कब्ज़ा ही नहीं जमा लिया है बल्कि उसको बंधक भी बना लिया है किंतु बेहद खेद है की न तो किसी मंत्रालय ने अथवा सरकारी प्रशासनिक विभाग ने इसका कोई स्वत संज्ञान लिया तथा इसको रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। साफ़ तौर पर ऐसा प्रतीत होता है की देश के नियमों ने इन कम्पनियों के आगे घुटने टेक दिए हैं तभी ये कम्पनियाँ बिना किसी डर के खुले रूप से ई-कामर्स व्यापार में अपनी मनमानी कर रहीं हैं और इनकी लगाम कसने वाला कोई तंत्र नहीं है । अफ़सोस तो इस बात का है की यहाँ तक की सबूतों के साथ शिकायतें करने के बाद भी इसकी रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया । केवल व्यापारियों द्वारा दायर शिकायतों पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा जांच शुरू करने की रस्मी कार्यवाही ही हुई है और जिस धीमी गति से जांच चल रही है , देश के व्यापारी उससे कतई संतुष्ट नहीं है एवं किसी सार्थक परिणाम की कोई उम्मीद भी नहीं है। फेमा क़ानून के उल्लंघन की जांच प्रवर्तन निदेशालय गत दो वर्षों से अधिक समय से कर रहा है किन्तु उसकी भी जांच का कोई पता नहीं है। हमारा यह निश्चित मत है की यह अमरीकी कंपनियों द्वारा सीधे तौर पर एक आर्थिक आतंकवाद है ।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की गत सप्ताह एक वैश्विक समाचार एजेंसी ने अमरीकी कम्पनी अमेज़न पर सबूतों के साथ बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा की अमेज़न भारत के उद्योगों के उत्पाद की नक़ल कर उन्हें अपनी व्यवस्था के जरिये बनवाती है और फिर बेहद कम दामों पर उनको बेच कर ई कॉमर्स व्यापार पर अपना

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प्रभुत्व स्थापित कर रही है जिससे भारत के लघु उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं और यही नहीं अमेज़न अपने पोर्टल पर सर्च व्यवस्था में हेरा फेरी कर अपने उत्पादों को शीर्ष पायदान पर रख अन्य विक्रेता व्यापारियों के व्यापार को रोकती है। यह सीधे तौर पर प्रधानमंत्री श्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के सर्वथा विरुद्ध है क्योंकि इनकी कुटिल नीतियों का शिकार देश का लघु एवं माध्यम उद्योग और व्यापारिक वर्ग है ।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा की एक तरफ़ तो भारत में अमरीकी कम्पनी ऐमज़ान द्वारा इस तरह की अस्वस्थ व्यापारिक नीति को बेहद गंभीर विषय मानते हुए अमरीकी सीनेट के लगभग 15 सीनेटरों, जिसमें दोंनो राजनैतिक दल डेमोक्रैट एवं रिपब्लिक शामिल हैं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसका स्वतः संज्ञान लिया और अमरीकी सीनेट की जुडिशल कमेटी तथा एंटी ट्रस्ट कमेटी ने इस पर कार्यवाही शुरू की है लेकिन दूसरी तरफ़ खेद का विषय है की भारत से सम्बंधित मामला होते हुए भी अभी तक देश के किसी भी मंत्रालय अथवा प्रशासनिक निकाय ने इसका कोई संज्ञान ही नहीं लिया है और ऐसा प्रतीत होता है की उनके लिए यह बेहद साधारण मामला है जबकि अमेज़न की यह नीति देश के छोटे व्यापारियों को तबाह करने की एक सोची समझी साजिश है । किसी भी तरफ़ से त्वरित न्याय न मिलने के बाद कैट को मजबूरन प्रधानमंत्री श्री मोदी के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने के आग्रह के लिए विवश होना पड़ा है।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने यह भी कहा की इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेख करना आवश्यक है की गत दो वर्षों में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्री पियूष गोयल ने अनेक बार विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से कहा है की देश के क़ानून एवं नियमों का पालन अक्षरश करना होगा किन्तु उनके इस वक्तव्य को भी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों ने कोई तवज्जो नहीं दी और लगातार देश के क़ानून एवं नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है जिसका कोई संज्ञान किसी ने नहीं लिया । माननीय उच्चतम न्यायालय एवं कर्नाटक तथा दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा भी अमेज़न एवं फ्लिपकार्ट की व्यापारिक नीतियों पर सख्त टिपण्णी की है किन्तु प्रशासनिक व्यवस्था पर उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा जो बेहद अफसोसजनक है।
इस प्रकार का विदेशी कम्पनियों द्वारा निरंकुश व्यवहार सर्वथा अनुचित है और देश के बृहद हित के खिलाफ़ है । इस सन्दर्भ में यह स्पष्ट करना जरूरी है की देश के व्यापारी ई कॉमर्स व्यापार के खिलाफ नहीं है लेकिन ई कॉमर्स व्यापार में क़ानून एवं नियमों का पालन हो, इसके पक्षधर अवश्य हैं। जिस प्रकार से सरकारी प्रशासनिक निकायों में इस ज्वलंत विषय पर उदासीनता है उससे यह प्रतीत होता है की उन पर अमेरिकी कंपनियों का प्रभाव है और देश के व्यापारिक समुदाय के व्यापार के बारे में वो कतई भी चिंतित नहीं है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है । गत 2016 से लगातार इस विषय पर ध्यान देने का आग्रह हम कर रहे हैं किंतु पाँच वर्ष बीत जाने के बाद भी स्तिथि ज्यों की त्यों है। इस विषय पर या तो सरकार की नीति में स्पष्टता का अभाव है अथवा ज़िम्मेदार लोग किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं ।
कैट ने इस विषय पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से इस ज्वलंत मुद्दे का संज्ञान लेकर कर सम्बंधित मंत्रालयों एवं सरकारी एजेंसियों को इस विषय पर तुरंत कार्यवाही करने का निर्देश दें । कैट ने इस सम्बन्ध में तथा देश के रीटेल व्यापार पर विस्तृत चर्चा हेतु प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी माँगा है।

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