पोषण ट्रैकर पर लगा ब्रेक, रायपुर में सरकारी सिम बंद होने से आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का काम प्रभावित


रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सरकारी तंत्र की एक बड़ी लापरवाही का खामियाजा हजारों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भुगत रही हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बिल का भुगतान न किए जाने के कारण टेलीकॉम कंपनी ने कार्यकर्ताओं को दिए गए सरकारी सिम कार्ड बंद कर दिए हैं। इस वजह से न केवल उनका महत्वपूर्ण सरकारी काम पूरी तरह से ठप हो गया है, बल्कि उनके निजी जीवन में भी भारी उथल-पुथल मच गई है।
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मिली जानकारी के अनुसार, महिला एवं बाल विकास विभाग पर टेलीकॉम कंपनी का करीब साढ़े आठ लाख रुपये का बिल बकाया है। भुगतान न होने पर कंपनी ने रायपुर के आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के सरकारी सिम कार्ड बंद कर दिए। इन सिम का मुख्य उपयोग ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप को चलाने के लिए होता था, जो गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए एक अनिवार्य उपकरण है। सिम बंद होने से यह पूरी महत्वपूर्ण व्यवस्था ठप पड़ गई है।
कार्यकर्ताओं ने अपनी सबसे बड़ी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि अधिकारी उन पर काम पूरा करने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन यह नहीं देख रहे कि यह संभव कैसे होगा। एक कार्यकर्ता ने कहा, “हमारी तनख्वाह मात्र 10 हजार रुपये है। इस महंगाई में घर चलाना मुश्किल है। हम महंगा 5G फोन और हर महीने डेटा पैक का खर्च कैसे उठा सकते हैं? सरकार को यह सुविधा देनी चाहिए, न कि हम पर बोझ डालना चाहिए।”
यह समस्या सिर्फ सरकारी काम तक ही सीमित नहीं है। कार्यकर्ताओं ने इन सरकारी नंबरों को अपने आधार कार्ड, बैंक खातों और अन्य जरूरी सेवाओं से लिंक कर रखा था। सिम बंद होने से OTP (वन टाइम पासवर्ड) आना बंद हो गया है, जिससे उनका बैंकिंग लेनदेन और अन्य डिजिटल काम पूरी तरह रुक गए हैं।
जब कार्यकर्ताओं ने अपनी समस्या जिला कार्यक्रम अधिकारी को बताई, तो उन्हें केवल यह आश्वासन मिला कि “जल्द ही सिम एक महीने के लिए शुरू होगा।” लेकिन यह ‘जल्द’ कब आएगा, कोई नहीं जानता। एक तरफ सरकार कुपोषण को खत्म करने के बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर इस लड़ाई की सबसे महत्वपूर्ण योद्धाओं को बिना हथियारों (सुविधाओं) के ही मैदान में धकेला जा रहा है। यह मामला दिखाता है कि कैसे विभागीय लापरवाही का खामियाजा सबसे निचले स्तर के कर्मचारी अपने काम और निजी जीवन, दोनों में भुगतने को मजबूर हैं।










