’कैट द्वारा दो वर्ष से ऐमज़ान को ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप का प्रमुख पत्र पाँचजन्य ने भी किया अनुमोद ’
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने पांचजन्य के आगामी संस्करण में गए प्रमुख लेख की बहुत सराहना की है, जिसमें अमेज़ॅन को ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में उद्धृत किया गया है। इस लेख ने पिछले दो वर्षों से कैट के निरंतर रुख की पुष्टि की है कि अमेज़न और फ्लिपकार्ट दोनों भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का दूसरा संस्करण बनने की कोशिश कर रहे हैं।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी और प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में यह हम कई बार प्रमाणित कर चुके है, कि इन दोनों कंपनियों का व्यवसाय मॉडल ईस्ट इंडिया कंपनी के समान है, जो गुणवत्ता का दावा करने के बावजूद सस्ती दर पर सामान बेचती है जिससे देश की जनता को अपनी पसंद को दरकिनार कर सस्ते में माल खरीदने की आदत लग जाये, इससे देश मे रिटेल सेक्टर में प्रतिस्पर्धा अपने आप समाप्त हो जायेगी और ये विदेशी कंपनियां अपने पक्ष में बाजार पर एकाधिकार जमाने के बाद अधिक कीमत पर सामान बेचना शुरू कर देंगी और किसी भी प्रतिस्पर्धा के अभाव में उपभोक्ता के पास इनसे सामान खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। ठीक यही काम ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था और देश पर मौका लगते ही अपना क़ब्ज़ा किया। अमेज़न और फ्लिपकार्ट दोनों भारत के ई-कॉमर्स और खुदरा व्यापार पर कब्जा करके हमारे देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संस्कृति दोनों पर आक्रमण करना चाहते हैं।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने केंद्र सरकार से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स नियमों को तुरंत अधिसूचित करने का आग्रह किया ताकि अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट के भयावह मंसूबों पर विराम लगाया जा सके। अत्यधिक देरी अमेज़न और फ्लिपकार्ट के हाथों देश के छोटे व्यापारियों को पूरी तरह खत्म कर रही है। इन दोनों कम्पनियों की कुरीतियों के कारण अब तक 2 लाख से अधिक दुकानें बंद होने को मजबूर हो चुकी हैं, जो देश के व्यापारियों को परेशान कर रही हैं और इसलिए नियमों का कार्यान्वयन अत्यंत आवश्यक है।