शोध में हुए चौंकाने वाले खुलासे, ब्लड कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है डायबिटीज

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मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित मरीज को यदि मधुमेह भी है, तो उसमें रक्त कैंसर के विकराल रूप लेने की आशंका बढ़ जाती है। एक शोध में सामने आया है कि ऐसे मरीजों की जीवित रहने की संभावन मधुमेह रहित पीड़ितों की तुलना में कम होती है। मल्टीपल मायलोमा बीमारी शरीर में कैंसर युक्त प्लाज्मा कोशिकाएं ‘एम प्रोटीन’ नामक एक खराब एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं। इससे रक्त कैंसर होने की शुरुआत होती है पर समय पर इलाज से यह मौत की वजह नहीं बनती।

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ब्लड एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, जांचकर्ता लंबे समय से मधुमेह के रोगियों में मल्टीपल मायलोमाके बढ़ते जोखिम के बारे में जानते हैं। इन स्थितियों के साथ रहने वाले लोगों के बीच जीवित रहने की दर की जांच करने वाला यह पहला अध्ययन है। मेमोरियल स्लोअन केटरिंग कैंसर सेंटर में मल्टीपल मायलोमा विशेषज्ञ डॉ. उर्वी शाह ने कहा, हमने पाया कि मल्टीपल मायलोमा के साथ मधुमेह वाले रोगियों में जीवित रहने की दर कम होती है। उन्होंने कहा, हम यह नहीं जानते थे कि ये परिणाम अलग-अलग नस्लों में कैसे भिन्न होते हैं। श्वेत व्यक्तियों की तुलना में अश्वेत व्यक्तियों में मधुमेह अधिक आम है और हम यह समझना चाहते थे कि क्या यह अंतर दोनों स्थितियों वाले रोगियों के स्वास्थ्य परिणामों में भूमिका निभा सकता है।

ऐसे किया अध्ययन-
शोधकर्ताओं ने मल्टीपल मायलोमा वाले 5,383 रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य देखभाल रिकॉर्ड से डेटा एकत्र किया। इसमें शामिल पंद्रह प्रतिशत रोगियों को मधुमेह था। डॉ. उर्वी शाह और सहकर्मियों ने देखा कि मायलोमा वाले रोगियों जिन्‍हें मधुमेह भी है, उनमें जीवित रहने की दर मधुमेह रहित लोगों की तुलना में कम थी। इस समूह में 60 वर्ष से अधिक उम्र के श्वेत रोगियों की तुलना में 45-60 वर्ष के अश्वेत रोगियों में मधुमेह 50 प्रतिशत अधिक था।

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भारत में तीसरे सबसे अधिक मामले- 
भारत रक्त कैंसर के दर्ज किए गए मामलों में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है। यह कैंसर प्रतिवर्ष देश में 70 हजार से अधिक लोगों की जान लेता है, जबकि हर साल लगभग एक लाख नए मामले सामने आते हैं। भारत ने रक्त कैंसर को समझने और इसके उपचार के क्षेत्र में अधिक ज्ञान और कौशल प्राप्त किया है। पर अब भी विकासशील देश के रूप में इस समस्या के लिए विशेष चुनौतियां मौजूद हैं। उच्च आबादी होने के कारण, पश्चिमी देशों की तुलना में दर्ज किए गए मामलों की संख्या कम है लेकिन मृत्यु दर अधिक है। इसके पीछे कई कारक हैं, जिसमें अच्छे स्वास्थ्य प्रणाली की कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते स्वास्थ्य देखभाल की कम पहुंच, और ब्लड कैंसर पर जागरूकता और शिक्षा की कमी शामिल हैं।

रक्त कैंसर के शुरूआती लक्षण –
– बार-बार इन्फेक्शन होना
– लगातार थकान का एहसास होना
– त्वचा पर नील पड़ना और खरोंच जैसे निशान
– अचानक वजन घटना
– अधिक ठंड लगना
– हड्डियों में दर्द महसूस होना
– सांस लेने में तकलीफ होना
– पेशाब करने में कठिनाई

कैसे होती है यह बीमारी-
– तंबाकू का इस्तेमाल
– अधिक शराब का सेवन
– रेडिएशन और हानिकारक रासायनिक पदार्थों के संपर्क में आना।
– परिवार में पहले किसी हो होना।

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