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मुर्गीपालन व्यवसाय को अपनाकर महिला समूह आत्मनिर्भरता की ओर 

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kabaadi chacha

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रायपुर। किसी भी काम में सफलता अनायास नहीं मिलती, बल्कि उसे प्राप्त करने के लिए बेहतर सोच, दृढ़ इच्छाशक्ति, अथक मेहनत और परिश्रम की जरूरत होती है। जांजगीर-चांपा जिले की औराईकला पंचायत के मोहारपारा की जय सती माँ स्व सहायता समूह महिला समूहों की अपनी मेहनत और लगन से गौठान में मुर्गीपालन का व्यवसाय अपनाकर आय आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। महिला समूह को इस काम में मनरेगा और बिहान परियोजना से मिली मदद, उनकी सफलता की राह को काफी हद तक आसान करने में मददगार साबित हुई है।
स्व-सहायता समूह केे लिए महात्मा गांधी नरेगा के मदद से बना पोल्ट्री शेड आज उनकी कर्मभूमि बन गया है। यहां मुर्गीपालन कर महिलाएं अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने लगी। शुरूआती दौर में कुछ मुश्किलें आई पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पूरे मनोयोग से मुर्गीपालन में जुटी रही। स्व-सहायता समूह की महिलाएं समूह के गठन के बाद नियमित रूप से अपनी बैठकें और बचत शुरू की। बचत की राशि को कम ब्याज पर गांव के जरूरतमंद लोगों को दिया। इससे उनकी बचत राशि में इजाफा हुआ और इससे उन्होंने मुर्गीपालन व्यवसाय को शुरू करने का निर्णय लिया। महिला समूह ने अपनी व्यवसायिक इच्छा पंचायत के समक्ष रखी। पचंायत ने समूह की महिलाओं की इच्छा शक्ति को देखते हुए मनरेगा से 5 लाख रूपए का मुर्गीपालन शेड गांव के गौठान में निर्मित किया।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती रूप बाई बिंझवार बताती हैं पशुपालन विभाग द्वारा उनके समूह को मुर्गी पालन का प्रशिक्षण दिया गया। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) योजना से अनुदान राशि के रुप में मिले रिवाल्विंग फंड के 15 हजार रूपए एवं सी.आई.एफ. (सामुदायिक निवेश निधि) के 60 हजार रुपए मिले, जिससे उन्होंने मुर्गीपालन का काम शुरू किया। उन्होंने काकरेल प्रजाति के 600 चूजे खरीदे, जिन्हें नियमित आहार, पानी, दवा एवं अन्य सुविधाएं देकर छह सप्ताह में बड़ा किया।  मौसम खराब होने के कारण कई चूजों की मौत हो गई, जिससे समूह को काफी नुकसान हुआ। इन सबके बावजूद समूह की महिलाओं ने हार नहीं मानी और फिर से मुर्गीपालन के काम में जुट गई। इस बार समूह ने 600 ब्रायलर चूजे खरीदे और उनकी देखभाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे ये चूजे बड़े हो गए, जिसे चांपा के एक बड़े व्यवसायी ने खरीदा और समूह को 30 हजार रूपए का मुनाफा हुआ। इस मुनाफे में समूह के उत्साह को दोगुना कर दिया। अब समूह लगातार चूजे खरीदने -पालने और बेचने लगा है। इससे समूह को नियमित रूप से लाभ होने लगा है। समूह से जुड़ी महिलाओं की आमदनी में वृद्धि हुई है। सरपंच श्री दशरथ यादव बताते हैं कि मुर्गीपालन सावधानी से किया जाने वाला कार्य है। नियमित रूप से देखभाल करनी पड़ती है। चूजों और मुर्गियों की देखभाल के लिए पशुपालन विभाग की भी मदद लेते हैं। गांव की अन्य महिलाओं को मुर्गीपालन व्यवसाय के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। आसपास के मुर्गी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों से भी संपर्क करके उन्हें अच्छे दाम दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है।

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