4 अप्रेल: पर्व विशेष : गणगौर………पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं करती हैं गणगौर पूजन

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राजस्थानी संस्कृति औऱ सौभाग्य का महापर्व गणगौर को सकल राजस्थानी, मालवा, हरियाणा और आस पास के जुड़े क्षेत्र के लोग गणगौर पूजा हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रारम्भ करते है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए गणगौर पूजा करती हैं। इस दिन माता पार्वती जी को गौरा जी और भगवान शिव जी को ईसर जी के स्वरूप में पूजा की जाती है।

*दाम्पत्य की खुशहाली से जुड़ा है यह पर्व*
यह पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की तृतीया से प्रारंभ हो जाता है जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक चलता है। इस दिन कन्याएं और विवाहित स्त्रियां मिट्टी के शिव जी यानी की गण औप माता पार्वती यानी की गौर बनाकर उनका पूजन करती हैं। यह त्योहार मुख्य तौर पर राजस्थान में मनाया जाता है। सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाकर दूब व फूल चुन कर लाती हैं। इस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी गणगौर माता को देती हैं। चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाया जाता है और दूसरे दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन इनका विसर्जन किया जाता है।

सुहागिनें इस दिन एक समय का व्रत रखती हैं व कथा सुनती हैं, नाचते गाते खुशी से पूजा-पाठ कर इस पर्व को मनाती हैं। चैत्र शुक्ल द्वितीया को किसी पवित्र तीर्थ स्थल या पास के सरोवर में गौरीजी को स्नान करवायें। तृतीया के दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर नाचते गाते उनकी शोभायात्रा निकालते हुए उन्हें विसर्जित किया जाता है। उपवास भी इसके पश्चात ही खोला जाता है। मान्यता है कि गौरीजी स्थापना जहां होती है वह उनका मायका होता है और जहां विसर्जन किया जाता है वह ससुराल। इस दिन गणगौर माता को फल, पूड़ी, गेहूं चढ़ाये जाते हैं। इस दिन कुँवारी लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार गणगौर का पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा स्त्रियां चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। इसमें 16 फल खुद के, सोलह भाई के, सोलह जवाई के और सोलह फल साल के होते हैं। चोले के ऊपर साड़ी व सुहाग का समान रखा जाता है। शाम में सूरज ढलने के बाद गाजे बाजे के साथ गणगौर को विसर्जित किया जाता है और जितना चढ़ावा होता है उसे माली को दे दिया जाता है। गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते हैं।

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*होली के दिन से होती है त्योहार की शुरुआत…*

राजस्थान में जब महिलाएं शादी के बाद होली में मायके में आती हैं तो बड़े धूमधाम इस पर्व को मनाकर अपने सुहाग के जीवन की मंगलकामना करती हैं। गणगौर में पारंपिक गीतों के साथ ईसर (शिव) और मां पार्वती का पूजन किया जाता है। धुलंडी के दिन होली की राख से सोलह गणगौर बनाकर सोलह दिन तक पूजा की जाती है। इसके बाद चैत्र मास की तृतिया तिथि को प्रतिमाओं को तालाब में विसर्जन करने की मान्यता है। अगर आप कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो घर के ही किसी कोने में छोटा सा कुंड बनाकर प्रतिमाओं को विसर्जित कर सकती हैं।

*गणगौर की पौराणिक मान्यता…*

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था। वहीं, माता पार्वती ने सभी सुहागन स्त्रियों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। महिलाएं ये पूजा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।

*गणगौर पूजन के गीत*

गौर गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती,
पार्वती के आला तीला, सोने का टीला।
टीला दे टमका दे, बारह रानी बरत करे,
करते करते आस आयो, मास आयो, छटे चौमास आयो।
खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो,
बीरो गुट कयगो, चुनड उड़ायगो,
चुनड म्हारी अब छब, बीरो म्हारो अमर।
साड़ी में सिंगोड़ा, बाड़ी में बिजोरा,
रानियां पूजे राज में, मै म्हका सुहाग में।
सुहाग भाग कीड़ीएं, कीड़ी थारी जात है ,
जात पड़े गुजरात है।
गुजरात में पानी आयो, दे दे खूंटियां तानी आयो,
आख्यां फूल-कमल की डोरी।

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*गणगौर के लोकगीत…*

गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की खूबसूरती हैं. इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में मानते हुवे गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं. राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है.गणगौर पूजन में कन्यायें और महिलायें अपने लिए अखंड सौभाग्य,अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं.

*लड़कियां भी रखती हैं ये व्रत…*

राजस्थान का यह त्योहार 16 दिनों का होता है। जहां लड़कियां होली में शादी के बाद मायके आकर इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाकर अपने सुहाग की मंगलकामना करती हैं। अतः सुहागिनें भी उन्हीं के साथ प्रमुख पूजा में सहयोग कर अपने परिवार और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।

*गणगौर पूजा में 16 अंक का है विशेष महत्व…*

इस पूजा में 16 अंक का विशेष महत्व होता है. गणगौर के गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली, मेहंदी से 16-16 बिंदिया लगाती हैं. गणगौर को चढ़ने वाले प्रसाद, फल व सुहाग की सामग्री 16 के अंक में ही चढ़ाई जाती. गणगौर का उत्सव घेवर और मीठे गुनों के बिना अधूरा माना जाता है. खीर, चूरमा, पूरी, मठरी से गणगौर को पूजा जाता है. आटे और बेसन के घेवर बनाए जाते हैं और गणगौर माता को चढ़ाए जाते हैं. गणगौर पूजन का स्थान किसी एक स्थान या घर में किया जाता है. गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा होते हैं.

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गणगौर पूजा का महत्व…

गणगौर पूजा भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और यह बहुत ही श्रद्धा भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली के दूसरे दिन से शुरू यह पर्व पूरे 16 दिन तक मनाया जाता है. सिर्फ राजस्थान में ही नहीं छत्तीसगढ़, यूपी, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश समेत पूरे भारत में इसके रंग देखने को मिलते हैं. यह पर्व चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को समाप्त होता है. इस दिन कुंवारी कन्याएं और महिलाएं मिट्टी से गौर बनाकर, उनको सुंदर पोषाक पहनाकर शृंगार करती हैं और खुद भी संवरती हैं. कुंवारी कन्याएं इस व्रत को मनपसंद वर पाने की कामना से करती है, तो वहीं विवाहित महिलाएं इसे पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. महिलाएं 16 श्रृंगार, खनकती चूड़ियां और पायल की आवाज के साथ पारंपरिक बंधेज की साड़ी में नजर आती हैं.

गणगौर व्रत कथा…

गणगौर व्रत का संबंध भगवान शिव और माता से है। शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले। सभी एक गांव में पहुंचें। जब इस बात की जानकारी गांववालों को लगी तो गांव की संपन्न और समृद्ध महिलाएं तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई। ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। फिर थोड़ी देर में संपन्न परिवार की महिलाएं तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंची लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया। ऐसे में अब आप क्या करेंगी।  तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बांटे। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था.

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ऐसे करनी चाहिए गणगौर की पूजा…

पूजा करते समय गौरी जी की स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, शीशा, काजल आदि चढ़ाएं। सुहाग की साम्रगी को चंदन, अक्षत, धूप-दीप से विधि पूर्वक पूजा की जाती है और मां गौरी को भोग लगाया जाता है।

इस बार गणगौर पूजा 4 अप्रेल सोमवार को है। पिछले वर्षों में कोरोना वायरस के चलते भक्तों को घर पर ही विधि विधान के साथ पूजा की। अब पूरे देश में प्रशासनिक बन्धन में कहीं कहीं छूट दी जा रही है। जिसके चलते सभी वर्गों में अच्छा उत्साह है। गणगौर पर्व छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के आलवा उत्तर भारत के ज्यादातर जिलों में इसे मनाया जाता है। अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाने वाला ये पर्व और इसकी पूजा दोनों ही खास होती है।

 

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