Parkinson’s Disease : बुजुर्गों को पार्किंसंस डिसीज का खतरा ज़्यादा, 5 लक्षण न करें नजरअंदाज, ऐसे रखें ख्याल

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dr. abhijeet kumar kohat
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kabaadi chacha
Parkinson’s Disease : बुजुर्गों को पार्किंसंस डिसीज का खतरा ज़्यादा, 5 लक्षण न करें नजरअंदाज, ऐसे रखें ख्याल

उम्र बढ़ने के साथ लोगों को कई गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ने लगता है। 50 या 60 साल की उम्र को पार करने के बाद लोगों को ब्रेन से जुड़ी पार्किंसंस डिसीज (Parkinson’s Disease) का जोखिम बढ़ जाता है। पार्किंसंस ब्रेन से जुड़ी एक बीमारी है, जो ज्यादा उम्र के लोगों को बुरी तरह प्रभावित करती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो किसी व्यक्ति को अपना शिकार बना ले, तो जिंदगीभर इस परेशानी से जूझना पड़ता है। इसे किसी भी दवा से पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है। अगर शुरुआत में ही लक्षण पहचानकर इलाज शुरू कर दिया जाए, तो इस बीमारी के लक्षण कंट्रोल किए जा सकते हैं। आज न्यूरोलॉजी क्लिनिक में जानेंगे कि पार्किंसंस डिसीज की वक्त रहते कैसे पहचान की जाए और इसका इलाज क्या है।

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पार्किंसंस ब्रेन से जुड़ी एक प्रोग्रेसिव डिसीज है, जिसकी वजह से लोगों के ब्रेन की सेल्स डीजेनरेट होना शुरू हो जाती है। इस वजह से मस्तिष्क में डोपामिन नमक तत्व की कमी हो जाती है। इस वजह से मरीज के काम करने में धीमापन आ जाता है। उनके हाथ काँपने लगते हैं और कभी भी गिरने का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा उन्हें भूलने की समस्या होने लगती है और कई व्यावहारिक परिवर्तन भी हो सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर सीनियर सिटीजन्स पर देखने को मिलता है। कम उम्र के लोगों को भी यह बीमारी होती है। पार्किंसंस एक ऐसी बीमारी है, जो लोगों की आम जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित करती है. इसका सही समय पर इलाज बेहद जरूरी है।

पार्किंसंस डिसीज के प्रमुख लक्षण –

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■ दैनिक काम करने में बेहद धीमापन आना
■ हाथों में कँपन होना या हाथों का स्वतः हिलना
■ अचानक बैलेंस बिगड़कर जमीन पर गिरना
■ छोटी-छोटी चीजों को भी भूलने की आदत होना
■ व्यवहार में तेजी से बदलाव आना

न्यूरोलॉजी क्लिनिक में विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बीमारी के कुछ जेनेटिक फैक्टर हो सकते हैं, अर्थात यह बीमारी आनुवंशिकी हो सकती है। इसके अलावा इसके बहुत से कारण हो सकते हैं, जिनका निर्धारण करना लगभग असम्भव होता है। जिन लोगों की पार्किंसंस डिसीज की फैमिली हिस्ट्री होती है, उन्हें इसका खतरा अन्य लोगों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है। इस बीमारी का कोई बचाव नहीं है। पार्किंसंस डिसीज को दवाओं के सहारे कुछ हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। जब डिसीज ज्यादा बढ़ जाती है, तब ऑपरेशन किया जा सकता है। हालाँकि इसे रोका नहीं जा सकता है और ना ही रिवर्स किया जा सकता है।

पार्किंसंस के मरीजों का ऐसे रखें ख्याल –
■  ऐसे मरीजों को हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने में मदद करें
■ मरीजों को बीमारी के लक्षणों के बारे जागरूक करे
■ लक्षण दिखने पर बुजुर्गों का सही समय पर इलाज कराएँ
■ ऐसे मरीजों को फिजिकली और मेंटली एक्टिव रहने में मदद करें
■ पेशेंट्स को समय पर दवा दें

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