नई दिल्ली: भारत में कुल मिलाकर सात फीसदी आबादी किसी ना किसी रेयर बीमारी की चपेट में हैं. जो बीमारी 1000 में से 1 व्यक्ति या उससे कम को हो उसे रेयर यानी दुर्लभ बीमारी माना जाता है. भारत को छह दुर्लभ बीमारियों की आठ दवाएं तैयार करने में सफलता मिली है। बता दे की अब तक इन रोगों की सालाना दवाएं करोड़ों रुपये में आती थीं लेकिन अब चार ऐसी दवाएं देश में बननी शुरू हो गई हैं। जिसके बाद उपचार का खर्च करोड़ों से घटकर कुछ लाख रुपये ही रह गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी।उन्होंने कहा कि सरकार ने उद्योग जगत के साथ मिलकर 13 आम प्रचलित दुर्लभ बीमारियों की दवाएं भारत में बनाने का निर्णय लिया था। अब तक छह बीमारियों की आठ दवाएं तैयार करने में सफलता मिली है। इनमें से चार दवाएं बाजार में उतार दी गई हैं। चार दवाएं तैयार हैं लेकिन वे नियामक की मंजूरी की प्रक्रिया में हैं तथा शेष बीमारियों की दवाओं को लेकर कार्य प्रगति पर है।
मंडाविया और पॉल ने बताया कि आनुवांशिक रूप से होने वाली यकृत से जुड़ी बीमारी टाइरोसिनेमिया टाइप-1 के इलाज में इस्तेमाल होने वाले कैप्सूल निटिसिनोन के जरिये एक बच्चे के उपचार का सालाना खर्च अभी 2.2 करोड़ रुपये के करीब आता है। भारतीय कंपनी जेनेरा फार्मा ने इसका जेनेरिक संस्करण तैयार किया। इससे उपचार का सालाना खर्च महज ढाई लाख रह जाएगा। इस प्रकार यह 100 गुना कम हुआ। एक अन्य कंपनी अकम्स फार्मा भी इसे तैयार कर रही है।